कभी पूरे देश में 70 विरोध सभाएं तो कभी विरोध की एक भी आवाज तक नहीं?
—सुरेंद्र किशोर—
पिछले साल इसी महीने झारखंड में तबरेज अंसारी को उन्मादी भीड़ ने मार डाला। बहुत गलत हुआ, भले तबरेज के खिलाफ चोरी का आरोप था। किसी भीड़ को किसी अपराधी की भी जान लेने की छूट नहीं दी जा सकती। पर, ऐसी भीड़ हत्याएं दूसरे समुदायों के लोगों की भी होती रही हैं। उन हत्याओं के खिलाफ कब कितनी आवाज उठी? तबरेज की माॅब लिंचिंग के खिलाफ देश भर में एक साथ गत साल 70 नगरों में विरोध प्रदर्शन हुए थे। विरोध प्रदर्शन भी सही था। पर, इसी महीने अनंतनाग जिले में सरपंच अजय पंडिता की जेहादियों ने निर्मम हत्या कर दी। इसके बावजूद 70 नगरों में विरोध प्रदर्शन करने वालों में से किसी के मुंह से एक आवाज तक नहीं निकली। उनकी धर्म निरपेक्षता का यही ब्रांड है। लगता है कि उनके लिए जेहाद और धर्म निरपेक्षता एक ही चीज है।टुकड़े-टुकड़े गिरोह, अवार्ड वापसी जमात, अर्बन नक्सल आदि तथा उनके समर्थक कुछ बड़े राजनीतिक दलों व नेताओं के ऐसे ही दोहरे रवैए के कारण भाजपा आज सत्ता में है। और, आगे भी उसके बने रहने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।क्योंकि कई लोगों व संगठनों की एकांगी धर्म निरपेक्षता के रवैए में अब भी कोई परिवर्तन नहीं।हालांकि सन 2014 के लोस चुनाव के बाद ए.के.एंटोनी कमेटी ने कांग्रेस की हार के कारण गिनाते हुए अपनी रपट में कहा था कि ‘‘मतदाताओं को, हमारी पार्टी अल्पसंख्यक की तरफ झुकी हुई लगी जिसका हमें नुकसान हुआ।’’तबरेज अंसारी बनाम अजय पंडिता जैसे उदाहरण इस देश में आए दिन सामने आते रहते हैं। अब आप ही बताइए कि भाजपा को मजबूत बनाने के लिए जिम्मेदार कौन है?