ताड़ के पत्तों पर लिखा 200 साल पुराना महाभारत का इतिहास
झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिला के घाटशिला अनुमंडल के महुलडांगरी गांव के पुजारी आशित पंडा के परिवार में 200 वर्ष पूर्व ताड़ के पत्ते पर लिखा महाभारत का इतिहास सुरक्षित है। इस परिवार ने इसे संजो कर रखा है। महाभारत की कथा उड़िया भाषा में लिखी हुई है।पुराने जमाने में जब साधन और सुविधाएं नहीं थीं तो लोग कागज की जगह पेड़ की पत्तियों का इस्तेमाल करते थे। स्याही भी जंगली पत्तों या फूलों के रस से तैयार होती थी। कमाल यह कि ये कागज सालों-साल खराब नहीं होते थे वहीं स्याही भी अमिट हुआ करती थी। झारखंड के घाटशिला में भी 200 साल पुराना एक ऐसा ही ताड़ के पत्तों पर लिखा दस्तावेज है। घाटशिला में ताड़ के पत्तों पर लिखा गया प्राचीन ग्रंथ महाभारत यहाँ आज भी पुरी तरह सुरक्षित है। घाटशिला के एक एक पुजारी परिवार के पास मौजूद इस अमूल्य धरोहर को देखकर लोग हैरान रह जाते हैं। ताड़ पत्रों पर उकेरी गई भाषा आज भी आसानी से पढ़ी जा सकती है। 200 साल पुराने इस धर्मग्रंथ को पुजारी आशित पंडा के परिवार ने पांच पीढ़ियों से अपने पास संभाल रखा है। आशित बताते हैं कि इस ग्रंथ को प्रतिदिन पूजा पाठ के बाद ही पढ़ा जाता है। उन्होंने कहा कि उनके पूर्वज नरसिंह पंडा जगन्नाथपुरी धाम से ताड़ के पत्ते पर लिखा महाभारत ग्रंथ लाए थे। उस वक पुरी जाने का साधन केवल बैलगाड़ी हुआ करती थी। बैलगाड़ी से इस ग्रंथ को पहले बहरागोड़ा लाया गया था। उस समय इस महाभारत की कीमत मात्र पांच कौड़ी थी। आशित पंडा के परिवार के अन्य लोग भी इस ग्रंथ की लिखावट को पढ़ने में सक्षम हैं।