प्राइवेट स्कूलों के सामने मीमियाना बंद करें शिक्षा मंत्री, प्राइवेट स्कूलों की चाबी सरकार के हाथ
जमशेदपुर, 1 जून : लॉक डाउन के दौरान अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की फीस का मामला सुलझाने में झारखंड सरकार पूरी तरह असफल साबित हुई है।झारखंड के शिक्षा मंत्री जगन्नाथ महतो की हालत कसाई के खूंटे में बंधी गाय के समान हो गई है। वे इतने निरीह हो गए हैं कि उन्हें प्रेस से यह कहना पड़ा कि ‘मैं शिक्षा मंत्री हूं, निजी स्कूलों ने मेरी बात भी नहीं मानी।’
इससे साफ प्रतीत होता है कि प्राइवेट स्कूल माफिया सरकार पर भी भारी पड़ रहा है। याद रहे लॉक डाउन के शुरू में झारखंड सरकार के शिक्षा मंत्री ने प्राइवेट स्कूलों को आदेश दिया था कि वे स्कूल बंदी की अवधि की फीस बच्चों से न लें। प्राइवेट स्कूल के एक संगठन ने शिक्षा मंत्री की किस बात का विरोध किया। संगठन ने कहा कि फीस लिए बिना वे शिक्षकों का वेतन कैसे देंगे। अगर ऐसा होगा तो भी स्कूल नहीं चला पाएंगे। प्राइवेट स्कूल की यह बंदर घुड़की सुनकर शिक्षा मंत्री घबरा गए। उन्होंने अपने आदेश को अपील में बदल दिया और कहा कि प्राइवेट स्कूल बंद के दौरान बच्चों से फीस न लें। जाहिर है स्कूल वालों ने उनकी बात नहीं मानी तथा अभिभावकों को मैसेज भेज कर फीस जमा नहीं करने पर बच्चों का नाम स्कूल से काट देने की धमकी देना शुरू किया। ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान फीस नहीं देने वाले बच्चों को स्कूल प्रबंधन में व्हाट्सएप ग्रुप से आउट कर दिया। जिससे बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई भी प्रभावित हुई। सरयू राय जैसे धाकड़ विधायक, अनेक जनप्रतिनिधि और सामाजिक संगठनों की फरियाद भी प्राइवेट स्कूलों ने नहीं सुनी। जबकि प्राइवेट स्कूलों की चाबी सरकार के हाथ में है। राज्य सरकार द्वारा नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट देने के बाद ही स्कूलों को दिल्ली बोर्ड से मान्यता मिलती है। अगर सरकार नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट नहीं दे या शिक्षा विभाग के पदाधिकारी बिना घूस लिए ईमानदारी से स्कूलों का सर्वेक्षण कर नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट देना शुरू करें तो आधे से अधिक स्कूल अपने आप बंद हो जाएंगे। क्योंकि वे नो ऑब्जेक्शन के मापदंडों को पूरा नहीं करते। अनेक स्कूलों के पास खेल का मैदान नहीं है, फिर भी शिक्षा विभाग के पदाधिकारियों ने घूस लेकर उन्हें नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट दे दिया है। अनेक स्कूल विद्यार्थियों की संख्या के मुताबिक टीचर नहीं रखते हैं, फिर भी उन्हें नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट दे दिया गया। लगभग सभी स्कूल अपनी टीचरों को कम सैलरी देते हैं और ज्यादा सैलरी के वाउचर में साइन कर आते हैं। इसकी जांच सरकार उच्च जांच एजेंसी से करा सकती है। अगर झारखंड के शिक्षा मंत्री हर एक प्राइवेट स्कूल के नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट की ईमानदारी से जांच करा दें तो उन्हें प्राइवेट स्कूलों के सामने बकरी की तरह मिनियाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

अगर सरकार को प्राइवेट स्कूलों पर ज्यादा ही दया आ रही है तो सरकार स्कूल बंदी के समय का सही वेतन भुगतान टीचरों और कर्मचारियों को स्वयं करें। बदले में सरकार स्कूल की फीस पूरी तरह माफ करने का आदेश जारी करें। इससे स्कूल को भी घाटा नहीं होगा और अभिभावक भी मुफ्त में फीस दिन से बचेंगे।