कोरोना बढ़ाने में राजनीतिक ललक और प्रशासनिक लापरवाही जिम्मेदार

कविकुमार
जमशेदपुर, 20 जुलाई : टाटा के शहर जमशेदपुर में आज चार लोगों की कोविड-19 से मौत की खबर आई। यह चारों जमशेदपुर शहरी इलाके के निवासी थे।
याद रहे जब देश के सारे राज्यों और झारखंड राज्य के अधिकांश जिलों में कोरोना संक्रमण फैल चुका था, उस समय जमशेदपुर में एक भी कोरोना संक्रमित मरीज नहीं था। जमशेदपुर में पहला कोरोनावायरस संक्रमित मरीज 14 मई 2020 को बारीडीह बस्ती में मिला। इससे पहले 12 मई 2020 को दो संक्रमित विद्यार्थी मिले थे। परंतु वे जमशेदपुर शहर के नहीं बल्कि पूर्वी सिंहभूम जिला के बहरागोड़ा प्रखंड के थे।
आज जिले में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 800 से ज्यादा पहुंच चुकी है। 11 लोग कोविड-19 के चलते मौत की नींद सो चुके हैं। जिस शहर में कोरोना संक्रमण काफी बाद में आया आज वह शहर कोरोना संक्रमण के कारण झारखंड राज्य में पहले पायदान पर है। आखिर इसका दोषी कौन है?
जमशेदपुर में कोरोना संक्रमण फैलने के आंकड़े बताते हैं कि राज्य के बाहर से आए विद्यार्थियों और प्रवासी मज़दूरों के कारण यहां कोरोना वायरस संक्रमण फैला। कहना नहीं होगा कि इसके लिए राजनीतिक दलों के नेता जिम्मेवार हैं।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राजनीतिक फायदा उठाने के कारण केंद्र सरकार से सबसे पहली कोरोना स्पेशल ट्रेन की मांग की। केंद्र सरकार के रेल मंत्री पीछे क्यों रहते हैं। उन्होंने राजनीतिक फायदा उठाने के लिए हेमंत सोरेन की मांग फौरन स्वीकार कर ली और झारखंड राज्य को सबसे पहली कोरोना स्पेशल ट्रेन दी।राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है ये दोनों राजनेता आदिवासियों की सहानुभूति बटोरना चाहते थे। झारखंड की देखा देखी अन्य राज्यों ने भी ट्रेन मांगी और पीयूष गोयल ने उन्हें ट्रेन दी। जिससे चुनाव के समय इस सहानुभूति को वोटों में बदला जा सके और यहींं झारखंड मार खा लिया। 5 लाख प्रवासी मज़दूरों को झारखंड लाने की जल्दी में झारखंड के सवा तीन करोड़ लोगों की जान की परवाह नहीं की गई। उस वक्त झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी अपनी पीठ थपथपाते हुए कहा था कि भाजपा की केंद्र सरकार ने ही झारखंड को सबसे पहली कोरोना स्पेशल ट्रेन दी। जिससे प्रवासी मज़दूर भाई अपने घर लौट सकें।
याद रहे पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ कहा था कि जो प्रवासी मज़दूर जहां हैं वहीं रहेंं। उन्हें बिहार नहीं लाया जाएगा। परंतु झारखंड को देखकर उन्हें भी राजनीतिक कंपटीशन करना पड़ा। उन्होंने भी स्पेशल ट्रेन मांगी और प्रवासी मज़दूरों को लाए। जिसके कारण बिहार का भी बुरा हाल हो गया।

यह सब जानते हैं कि प्रवासी मज़दूर भाई झारखंड आए और अपने साथ कोरोना वायरस लेते आए। उन्होंने तबलीगी जमात द्वारा देशभर में फैलाए गए कोरोना संक्रमण को भी काफी पीछे छोड़ दिया। लोग तबलीगी जमात के संक्रमण को भूल गए। चौंकाने वाली बात यह है कि अभी झारखंड में संक्रमण का दौर विस्फोटक स्थिति में है और प्रवासी मज़दूर फिर से चोरी-छिपे नौकरी करने के लिए महानगरों में जा रहे हैं। इससे राजनीतिक दलों की आशाओं पर पानी फिर गया कि प्रवासी मज़दूर झारखंड में ही रहेंगे और अगले चुनाव में उन्हें थोक में वोट देंगे। केंद्र या राज्य सरकारें उन मज़दूरों को अपने यहां सुविधा पूर्वक ठहराने की कोशिश करतीं तो भारत कोरोना की विस्फोटक स्थिति में नहीं आता।
बहरहाल, यह हुई राजनीतिक लापरवाही। इसके अलावा जमशेदपुर शहर में प्रशासनिक लापरवाही भी काफी हुई। इसका मतलब यह नहीं कि सरकार के बड़े प्रशासनिक अधिकारी लापरवाह बने रहे। प्रशासनिक अधिकारियों ने काफी मेहनत की। परंतु तजुर्बा नहीं होने के कारण पूरी कड़ाई नहीं बरती गई।
इसमें सबसे ज्यादा दोष जमशेदपुर की अधिकांश लतखोर जनता का है। जो बिना लात खाए बात नहीं मानती और यहीं प्रशासनिक अधिकारी फेल हो गए।लॉकडाउन और कर्फ्यू के दौरान दूसरे जिलों से आने वाले चेक पोस्ट पर कड़ाई से जांच नहीं की गई। जिससे कई संक्रमित प्रशासन की नजरों से छुपकर जमशेदपुर में आ गए। ‘आजाद न्यूज़’ टीम ने लॉकडाउन वन के दौरान रात 3 बजे से 5 बजे तक दूसरे शहर से जमशेदपुर आने वाले सभी चेक पोस्टों का निरीक्षण किया। एक-दो को छोड़कर किसी ने हमारी टीम की गाड़ी की जांच नहीं की। जबकि गाड़ी पर प्रेस नहीं लिखा था।

केंद्र सरकार का अनलॉक शुरू होने के बाद (जबकि झारखंड सरकार का लॉकडाउन जारी था। जो 31 अगस्त 2020 तक जारी रहेगा) पुलिस प्रशासन जैसे गहरी नींद सो गया। चेकिंग बंद कर दी गई, बिना मास्क लगाए लोग घूमते रहे, बाजारों में भीड़ होने लगी, राजनेता, डॉक्टर, जनप्रतिनिधि, मंत्री, राजनीतिक दल के लोग खुलेआम सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते रहे। यहां तक की 2 से 3 सौ की भीड़ डीसी ऑफिस के सामने अपनी मांगों के समर्थन में प्रदर्शन करने लगी। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि हर तरह से कोरोना संक्रमण से बचाव के उपायों की धज्जियां उड़ाई गईंं।
टाटा घराने की अनेक कंपनियों में कोरोना संक्रमित लोग काम करने घुसे और दूसरे मज़दूरों को भी संक्रमित किया। अपने ठेका मज़दूरों के संक्रमण जांच की जिम्मेदारी उठाना भी कंपनियों ने स्वीकार नहीं किया। सारा भार जिला प्रशासन पर दे दिया गया। हद तो तब हो गई जब रेड जोन एरिया से जमशेदपुर आने वालों लोगों की स्वाब जांच भी प्रशासन ने बंद कर दी। सिर्फ उन्हें 14 दिनों के क्वॉरेंटाइन में भेज कर जिला प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारी समाप्त कर ली। दोबारा ऐसे लोगों का हाल चाल पूछने की फुर्सत भी सरकारी जांच टीम को नहीं मिली। ऐसी कई घटनाओं का खुलासा हुआ जब कोरोना वायरस संक्रमित लोग खुलेआम बाजारों में घूमते रहे और अनेक लोगों को संक्रमित करते रहे।
अब जब कोरोना संक्रमण काफी बढ़ गया है और जमशेदपुर में मौतों का सिलसिला शुरू हो गया है तब फिर प्रशासन में कड़ाई शुरू की है। शुरू से की जाने वाली कड़ाई को प्रशासन ने किसके आदेश से कम कर दिया था, यह समझ के बाहर है।
सर्वाधिक चौंकाने वाली बात यह है कि हजारीबाग में पूर्वी सिंहभूम जिले से कम कोरोनावायरस पीड़ित और मौत होने के बाद भी जमशेदपुर में पूरी तरह लॉकडाउन नहीं लगाया जा रहा है। जबकि हजारीबाग में पूरी तरह लॉकडाउन लगा दिया गया है।
ऐसा समझा जाता है कि जमशेदपुर की बड़ी-बड़ी कंपनियों और व्यापारियों के इशारे पर जमशेदपुर में पूरी तरह लॉकडाउन नहीं लगाया जा रहा है।
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