स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले का बुरा हाल, कोरोना के डर से ड्यूटी पर नहीं आ रहे सीनियर सरकारी डॉक्टर

कवि कुमार
जमशेदपुर, 2 जुलाई : महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज अस्पताल की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इस अस्पताल में सीनियर डॉक्टरों की सलाह गरीब रोगियों को मुफ्त में मिलती है। इसी तरह की सलाह के लिए उन्हें प्राइवेट डॉक्टरों को 3 सौ से लेकर 5 सौ रुपए तक फीस देनी पड़ती है। यहां के सीनियर डॉक्टर काफी अनुभवी और योग्य हैं। इतने योग्य डॉक्टर टाटा मेन हॉस्पिटल में भी नहीं हैं। यह बात अलग है कि रघुवर सरकार ने यहां के आधा दर्जन योग्य सीनियर डॉक्टरों का सामूहिक तबादला पिछले साल धनबाद कर दिया था। परंतु कोरोना काल में महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज अस्पताल दिव्यांग हो गया है।

जबकि यह झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के गृह जिले का एकमात्र बड़ा सरकारी अस्पताल है। इसका कारण यह है कि कोरोनावायरस के डर से अस्पताल के ओपीडी और इमरजेंसी में 95 प्रतिशत सीनियर डॉक्टरों ने बैठना बंद कर दिया है। जिससे गरीब मरीज उनकी चिकित्सकीय सलाह से भी वंचित हो गए हैं। सीनियर डॉक्टर अपने बदले जूनियर डॉक्टरों को बैठाकर ओपीडी और इमरजेंसी चला रहे हैं। कम अनुभव होने के कारण जूनियर डॉक्टर रोगों की पहचान करने और रोगियों को उचित सलाह देने में सक्षम नहीं है।

एक्स-रे देखने के बाद भी जूनियर डॉक्टर किडनी स्टोन को गॉलब्लैडर स्टोन बता देते हैं।अस्पताल के कर्मचारी और नर्सों के मुताबिक कई सीनियर डॉक्टर हफ्ते-हफ्ते भर अस्पताल नहीं आते। एक-दो दिन अस्पताल आने के बाद फिर हफ्तों तक गायब हो जाते हैं। डॉक्टरों का यह सिलसिला लॉकडाउन के बाद से अब तक जारी है।जब ‘आज़ाद न्यूज़’ की टीम ने एमजीएमसीएच अस्पताल के ओपीडी का दौरा किया तो सर्जिकल ओपीडी में एक भी डॉक्टर नहीं थे। ऑर्थो ओपीडी में एक जूनियर डॉक्टर बैठे थे।

मेडिसिन ओपीडी में दो जूनियर डॉक्टर दिखाई दिए। आई ओपीडी में एक डॉक्टर भी नहीं थे। ईएनटी ओपीडी में 3 डॉक्टर थे पर सीनियर डॉक्टर कोई नहीं था।