अपने इकलौते बच्चे को मरने के लिए गांव ले गई एक आदिवासी विधवा, स्वास्थ्य विभाग नकारा
कविकुमार
जमशेदपुर, 14 अगस्त : इस 15 अगस्त की पूर्व संध्या को एक विधवा आदिवासी मां अपने 13 साल के इकलौते बेटे को मरने के लिए जमशेदपुर के अस्पतालों की चकाचौंध से दूर अपने गांव वापस ले गई। गांव पहुंचने के कुछ घंटे बाद बच्चे की मौत तड़प तड़प कर हो गई। आदिवासी मां को यह मजबूरी तब झेलनी पड़ी जब सूबे का मुख्यमंत्री आदिवासी है। बच्चे की मां के इलाके का सांसद भी आदिवासी है और वह केंद्रीय आदिवासी मामलों का मंत्री है। उस अभागी महिला के इलाके का विधायक भी आदिवासी है।
उससे डॉक्टरों ने कहा था कि बच्चा ज्यादा दिन जीवित नहीं रह सकता क्योंकि उसके खून में हीमोग्लोबिन 12 के बदले तीन रह गया है। उसके खून में प्लेटलेट्स 25,000 से भी कम हो गया था। प्लेटलेट कम होने के चलते बच्चे के अंदरूनी अंगों से खून निकलना शुरू हो गया था। जिसके चलते वह ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रह सका। कल शाम तक वह महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज अस्पताल के बच्चा इमरजेंसी वार्ड में दाखिल था। डॉक्टर उसे लगातार प्लेटलेट और खून चढ़ा रहे थे। यहां के डॉक्टर ने उसे बेहतर इलाज के लिए रिम्स रांची या टाटा हॉस्पिटल रेफर कर दिया परंतु बच्चे की अभागी मां के पास इतने रुपए नहीं थे कि वह उसका इलाज वहाँ ले जा सके।
उसने अपने बच्चे को लेकर अपने गांव जाना ही उचित समझा और आज वह बच्चे को लेकर खरसावां स्थित अपने गांव मोहन बेड़ा चली गई। कल आज़ाद न्यूज़ को बच्चे की हालत की जानकारी मिली तो इसकी सूचना ट्वीट द्वारा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, केंद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा, झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक दशरथ गगराई, पूर्वी सिंहभूम जिला के उपायुक्त सूरज कुमार, जाने-माने समाजसेवी अमरप्रीत सिंह काले आदि को भेजी गई पर किसी ने इस मामले को गंभीर मामला नहीं समझा।
चौंकाने वाली बात यह है कि विधवा आदिवासी महिला पंगेला केराई के पास आयुष्मान भारत का कार्ड भी है। परंतु टाटा मेन हॉस्पिटल में यह कार्ड नहीं चलता। वरना उसके बच्चे किरीश केराई का इलाज जमशेदपुर में हो जाता। जमशेदपुर स्टील सिटी के गाल पर तमाचा मार कर पेंगला केराई अपने बच्चे को मरने के वास्ते गांव ले गई। और वही हुआ जिसका डर था बच्चा रात को मर गया।