गरीबों की भूख मिटाने के लिए रेलवे वैगन तोड़ने वाला एक नेता
दिनेश षाड़ंगी, पूर्व मंत्री झारखंड सरकार
जमशेदपुर से दो-दो बार साँसद, बिहार सरकार में छापामार मन्त्री एवं दो-दो बार विधानसभा के सदस्य तथा विधानपार्षद रहे रुद्र प्रताप षाड़ंगी जी की जन्म जयन्ती पर उन्हें शत् शत् नमन। उनका जीवन इतिहास रत्नाकर से वाल्मीकि बनने की तरह था। चक्रधरपुर के एक साधारण गरीब परिवार में जन्म लेकर नॉन मैट्रिक होने के वावजूद स्वाध्याय से उन्हें राजनीति, समाजशास्त्र तथा इतिहास का गंभीर ज्ञान था। उड़िया और हिंदी में धारा प्रवाह एवं ओजस्विनी वक्ता सिंहभूम के राजनीति के बेताज बादशाह थे।
उनके अन्तरंग मित्र बागुन सुम्बरुई के साथ मिलकर साठ के दशक से लेकर आजीवन वे राजनीतिक क्षितिज पर छाए रहे। डॉ० मुकुन्द प्रधान एवं डॉ सरस्वती स्वाइन उनके सहपाठी थे। रुद्र महाराज के नाम से विख्यात चक्रधरपुर के जाति, धर्म, भाषा, निर्विशेष के गरीबों के वे मशीहा थे तथा एक बार अकाल के समय रेल वैगन काटकर हजारों बोरा चावल भुखमरी के शिकार लोगों को खिलाया था। चक्रधरपुर नगर पालिका के वे वर्षों तक अध्यक्ष रहे, समाजिक कुरीतियों का विरोध करने के साथ-साथ उन्होंने अंतर्जातीय विवाह किया था। अपनी बेटी तथा पत्नी के असामयिक निधन के वावजूद उनका सार्वजनिक जीवन अछूता रहा।
अदम्य साहस अत्यन्त ईमानदार तथा दूसरों के लिए सब कुछ लुटा देने वाले राजनेता के रूप में लोग आज भी उन्हें याद करते हैं। पुलिस के जोर जुल्म, अन्याय, प्रशासनिक भ्र्ष्टाचार के खिलाफ उनका जीरो टॉलरेंस था। विपक्ष में रहने के बावजूद बिहार के पूर्व मुख्य मंत्रियों पण्डित विनोदानंद झा, केबी सहाय, कर्पूरी ठाकुर, जगन्नाथ मिश्र एवं लालूप्रसाद सभी उनके कायल थे। सांसद के रूप में उन्होंने कई सराहनीय काम किये तथा अपने ही दल के नेता केंद्रीय मंत्री बीजू पटनायक के खिलाफ भ्रष्टाचार के स्वप्रमाण गम्भीर आरोप लगाने के कारण मोरारजी सरकार को जाँच कमीशन बैठाना पड़ा था। बहरागोड़ा के रेल संयोगिकरण के लिए चाकुलिया बड़ामारा रेलवे लाइन के लिये उन्होंंने पहल की थी तथा एक मुकाम तक उसे पहुँचाया था। जनता सरकार के गिर जाने के कारण वे आगे नहीं बढ़ पाए।
हमारे क्षेत्र में स्वर्णरेखा परियोजना से लेकर बहुत सारी बड़ी-बड़ी व मध्यम सिंंचाई योजना जैसे राम पाल बाँध, देव नदी बाँध, रंगड़ोंं बाँध जैसी परियोजनाओं को उन्होंने स्वीकृति दिलवाई थी। कृषि क्षेत्र में खासकर किसानों के संरक्षण के लिए उन्होंने कई कदम उठाए थे। सन 1979 में बहरागोड़ा-चाकुलिया क्षेत्र में नक्सलवादी आंदोलन एवं हिंसा के खिलाफ किसान मजदूर संघर्ष समिति का गठन कर रघुनाथ सिंह, नीलकण्ठ राउत एवं सुनील महापात्र जैसे लोगों के साथ मिलकर उसको खत्म करवाया था। उनके दाह संस्कार के समय चक्रधरपुर में तीन किलोमीटर लम्बी आबालवृद्ध वनिता की शोभा यात्रा में हजारों लोगों का समागम उनकी लोकप्रियता का प्रतीक था। प्राणी रो भोलो मन्दो वाणी मोरोन काले जानी।।